डॉ भीमराव अम्बेडकर द्वारा हिंदूओं को एकजुट करने का प्रयास, क्या कोई प्रमाण है?
डॉ. भीमराव अंबेडकर—एक नाम जो सामाजिक समानता, न्याय, और भारतीय संविधान के निर्माण का पर्याय है। उनका जीवन न केवल दलितों और वंचितों के उत्थान के लिए समर्पित था, बल्कि हिंदू समाज को जातिगत भेदभाव की बेड़ियों से मुक्त कर एकजुट करने का भी एक अनथक प्रयास था। हाल ही 14 अप्रैल 2025 को RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कानपुर में केशव भवन के उद्घाटन के समय कहा कि डॉ अम्बेडकर जी ने अपना जीवन हिंदू समाज की एकता के लिए समर्पित किया। लेकिन कई हिंदू लोग व संगठन RSS प्रमुख के इस बयान का विरोध कर रहे हैं।

लेकिन क्या वाकई अंबेडकर जी का दृष्टिकोण हिंदू समाज को एक करने का था? उनके आंदोलन, लेखन, और विचार इस बात को कितना सच साबित करते हैं? इस ब्लॉग में हम अंबेडकर के उन प्रयासों की गहराई में जाएंगे, जिन्होंने हिंदू समाज को एक नई दिशा देने की कोशिश की—चाहे वो महाड सत्याग्रह हो, काला राम मंदिर आंदोलन हो, या उनकी क्रांतिकारी रचनाएं जैसे Annihilation of Caste। आइए, उनके जीवन और कार्यों के जरिए जानें कि कैसे उन्होंने सामाजिक एकता का सपना देखा और उसे साकार करने की कोशिश की।
1. अंबेडकर के लेखन में प्रमाण
अंबेडकर ने अपनी किताबों और लेखों में बार-बार हिंदू समाज की एकता पर जोर दिया, खासकर जाति व्यवस्था को खत्म करके। उनके लेखन में हिंदू समाज को सुधारने और एकजुट करने की सोच साफ दिखती है। यहाँ कुछ प्रमुख किताबों और उनके उद्धरण हैं:
📕 "Annihilation of Caste" (1936):
ये किताब अंबेडकर का जाट-पट-टोडक मंडल के लिए लिखा गया भाषण था, जिसे बाद में प्रकाशित किया गया। इसमें उन्होंने हिंदू समाज की एकता के लिए जाति व्यवस्था को खत्म करने की जरूरत पर बल दिया।
उद्धरण: "I am convinced that the real remedy is inter-dining and inter-caste marriage. Nothing else will serve as the solvent of caste." (मुझे यकीन है कि असली समाधान है अंतर-जातीय भोजन और अंतर-जातीय विवाह। इसके अलावा कुछ भी जाति को खत्म नहीं कर सकता।)
प्रमाण: ये उद्धरण दिखाता है कि अंबेडकर हिंदू समाज के भीतर सामाजिक बंधनों को मजबूत करना चाहते थे, जो एकता की दिशा में कदम था। अंतर-जातीय भोजन और विवाह से वो समाज को एक सामाजिक इकाई के रूप में देख रहे थे।
स्रोत: Annihilation of Caste, Columbia University Press (2014 edition) या Navayana Publication, पैराग्राफ 22।
📘 "Who Were the Shudras?" (1946):
इस किताब में अंबेडकर ने हिंदू समाज के ऐतिहासिक विभाजन की पड़ताल की और शूद्रों को हिंदू समाज का अभिन्न हिस्सा बताया। उनका तर्क था कि शूद्रों को मुख्यधारा में लाकर ही हिंदू समाज एकजुट हो सकता है।
उद्धरण: "The Shudras were one of the Aryan communities of the solar race. They were not a separate race but a part of the Hindu society." (शूद्र सौर्य आर्य समुदायों में से एक थे। वे अलग जाति नहीं थे, बल्कि हिंदू समाज का हिस्सा थे।)
प्रमाण: ये किताब हिंदू समाज के भीतर सभी वर्गों को एकजुट करने की उनकी सोच को दर्शाती है। वो शूद्रों को हिंदू समाज का हिस्सा मानकर उनकी सामाजिक स्थिति सुधारना चाहते थे।
स्रोत: Who Were the Shudras?, Thacker & Co., Chapter 10।
📒 "The Hindu Code Bill" (1947-51):
अंबेडकर ने हिंदू कोड बिल के जरिए हिंदू समाज में एकसमान कानून लाने की कोशिश की, जिसमें विवाह, तलाक, संपत्ति, और उत्तराधिकार के नियम शामिल थे। उनका मकसद था हिंदू समाज को आधुनिक और एकजुट बनाना।
उद्धरण: "The Hindu Code Bill is an attempt to unify the Hindu society by removing the anomalies and inequalities that exist in the personal laws." (हिंदू कोड बिल हिंदू समाज को एकजुट करने की कोशिश है, जो व्यक्तिगत कानूनों में मौजूद विसंगतियों और असमानताओं को हटाएगा।)
प्रमाण: ये बिल हिंदू समाज को एक कानूनी ढांचे के तहत लाने का प्रयास था, जो सामाजिक एकता को बढ़ावा देता।
स्रोत: अंबेडकर के भाषण, Dr. Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches, Vol. 14, Part 2, Maharashtra Government Publication, pp. 1315-1320।
📘 "Buddha and His Dhamma" (1957, प्रकाशित मरणोपरांत):
हालांकि ये किताब बौद्ध धर्म पर केंद्रित है, लेकिन इसमें अंबेडकर ने सामाजिक समानता और एकता की बात की, जो हिंदू समाज के लिए भी लागू होती थी। उन्होंने बौद्ध धर्म को हिंदू समाज के सुधार के विकल्प के रूप में देखा।
उद्धरण: "The Hindus must reform their social order if they are to survive as a community. Equality and fraternity are the basis of a unified society." (हिंदुओं को अपने सामाजिक ढांचे में सुधार करना होगा, अगर वे एक समुदाय के रूप में जीवित रहना चाहते हैं। समानता और भाईचारा एकजुट समाज का आधार हैं।)
प्रमाण: ये दिखाता है कि अंबेडकर हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए समानता को जरूरी मानते थे।
स्रोत: Buddha and His Dhamma, Book IV, Part 2, Section 3।
2. अंबेडकर के आंदोलनों और कार्यों में प्रमाण
अंबेडकर ने कई आंदोलन और संगठन बनाए, जो हिंदू समाज में समानता और एकता लाने के लिए थे। यहाँ कुछ और विशिष्ट उदाहरण:🔳 महाड सत्याग्रह (1927):
महाड में चवदार तालाब तक दलितों की पहुंच के लिए आंदोलन हुआ। अंबेडकर ने इसे इसलिए शुरू किया ताकि हिंदू समाज में दलितों को बराबरी का हक मिले, जो सामाजिक एकता की दिशा में कदम था।
प्रमाण: अंबेडकर ने 20 मार्च 1927 को महाड में सभा को संबोधित करते हुए कहा, "We are not fighting for water alone; we are fighting for our rightful place in Hindu society." (हम सिर्फ पानी के लिए नहीं लड़ रहे; हम हिंदू समाज में अपने उचित स्थान के लिए लड़ रहे हैं।)
स्रोत: Dr. Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches, Vol. 17, Part 1, pp. 3-10।
घटना का प्रभाव: इस आंदोलन ने हिंदू समाज में दलितों के साथ भेदभाव पर सवाल उठाया और समानता की मांग को मजबूत किया।
🔳 काला राम मंदिर सत्याग्रह (1930-35):
नासिक में दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए अंबेडकर ने ये आंदोलन चलाया। उनका तर्क था कि मंदिर हिंदू समाज के केंद्र हैं, और अगर दलितों को वहां प्रवेश नहीं मिलेगा, तो समाज एकजुट नहीं हो सकता।
प्रमाण: अंबेडकर ने 1930 में नासिक सत्याग्रह के दौरान कहा, "If Hindus are to be a nation, they must remove the barriers of caste and allow all to worship together." (अगर हिंदू एक राष्ट्र बनना चाहते हैं, तो उन्हें जाति की दीवारें हटानी होंगी और सभी को एक साथ पूजा करने देना होगा।)
स्रोत: Dr. Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches, Vol. 17, Part 2, pp. 423-430।
प्रमाण का महत्व: ये आंदोलन हिंदू समाज के भीतर धार्मिक एकता की मांग को दर्शाता है।
🔳 इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (1936):
अंबेडकर ने इस पार्टी की स्थापना की, जो हिंदू समाज के निचले वर्गों और मजदूरों के हितों के लिए काम करती थी। इसका मकसद था हिंदू समाज के विभिन्न वर्गों को एक मंच पर लाना।
प्रमाण: पार्टी के घोषणापत्र में अंबेडकर ने लिखा, "The unity of Hindu society can only be achieved by uplifting the depressed classes and ensuring their economic and social equality." (हिंदू समाज की एकता केवल दमित वर्गों को ऊपर उठाकर और उनकी आर्थिक व सामाजिक समानता सुनिश्चित करके हासिल की जा सकती है।)
स्रोत: Dr. Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches, Vol. 2, pp. 67-70।
🔳 अंबेडकर जी के संवैधानिक कार्य
भारतीय संविधान के ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन के रूप में, अंबेडकर ने अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता उन्मूलन) और अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध) जैसे प्रावधान जोड़े। ये हिंदू समाज में जातिगत भेदभाव को खत्म करने और एकता को बढ़ावा देने के लिए थे।
प्रमाण: संविधान सभा की बहस में अंबेडकर ने कहा, "The Constitution is a step towards uniting the Hindu society by abolishing untouchability and ensuring equality before law." (संविधान अस्पृश्यता को समाप्त करके और कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करके हिंदू समाज को एकजुट करने की दिशा में एक कदम है।)
स्रोत: Constituent Assembly Debates, Volume VII, 4 नवंबर 1948।
3. ऐतिहासिक संदर्भ और अन्य लोगों के विचार
🔷 गांधी के साथ सहमति-असहमति: अंबेडकर और गांधी के बीच पूना पैक्ट (1932) एक बड़ा उदाहरण है। अंबेडकर ने दलितों के लिए अलग निर्वाचन की मांग छोड़ी ताकि हिंदू समाज राजनीतिक रूप से बंटे नहीं। ये उनकी एकता की सोच को दर्शाता है, भले ही वो बाद में इस फैसले से पूरी तरह खुश नहीं थे।
प्रमाण: पूना पैक्ट के दस्तावेज और अंबेडकर के पत्र (Dr. Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches, Vol. 9, pp. 87-90) में इसका जिक्र है।
🔷 सामाजिक संगठनों की स्थापना: अंबेडकर ने बहिष्कृत हितकारिणी सभा (1924) बनाई, जिसका मकसद था दलितों को शिक्षित करना और हिंदू समाज में उनकी स्थिति सुधारना। ये संगठन हिंदू समाज के भीतर एकता लाने का प्रयास था।
प्रमाण: संगठन के उद्देश्यों का विवरण Dr. Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches, Vol. 17, Part 1, pp. 15-20 में मिलता है।
4. बौद्ध धर्म अपनाने का संदर्भ
अंबेडकर ने 1956 में बौद्ध धर्म अपनाया, जिसे कुछ लोग हिंदू समाज से अलगाव के रूप में देखते हैं। लेकिन उनके लेखन और भाषणों से पता चलता है कि ये फैसला हिंदू समाज में सुधार की असफलता के कारण लिया गया। फिर भी, उनके बौद्ध धर्म में भी सामाजिक एकता और समानता का दर्शन था, जो हिंदू समाज के लिए उनके शुरुआती प्रयासों से मेल खाता है।
प्रमाण: 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में बौद्ध धर्म अपनाने के भाषण में अंबेडकर ने कहा, "I tried to reform Hindu society, but the orthodoxy was too strong. Buddhism offers the equality and unity that I sought." (मैंने हिंदू समाज को सुधारने की कोशिश की, लेकिन कट्टरपंथ बहुत मजबूत था। बौद्ध धर्म वह समानता और एकता देता है, जिसकी मैंने तलाश की।)
स्रोत: Dr. Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches, Vol. 17, Part 3, pp. 503-510।
5. प्रमाण के लिए स्रोत और प्रमुख किताबें
📒 Annihilation of Caste (1936) - Navayana Publication या Columbia University Press। 📕 Who Were the Shudras? (1946) - Thacker & Co.। 📙 Buddha and His Dhamma (1957) - Siddharth Books। 📘 Dr. Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches (17 खंड) - Maharashtra Government Publication, Dr. Ambedkar Foundation के माध्यम से उपलब्ध। 📒 Dr. Babasaheb Ambedkar: Life and Mission by Dhananjay Keer - अंबेडकर के आंदोलनों और विचारों का विस्तृत विवरण। 📕 Ambedkar: Awakening India’s Social Conscience by Narendra Jadhav - उनके सामाजिक एकता के प्रयासों पर फोकस।🔷 Dr. Ambedkar Foundation (भारत सरकार) की वेबसाइट पर उनके लेख और भाषण उपलब्ध हैं।
🔷 Constituent Assembly Debates (National Archives of India) में उनके संवैधानिक योगदान का रिकॉर्ड है।
6. मोहन भागवत के बयान का विश्लेषण
मोहन भागवत का बयान कि अंबेडकर ने हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए अपना जीवन समर्पित किया, उनके इन प्रयासों पर आधारित है। अंबेडकर ने जाति व्यवस्था को खत्म करके हिंदू समाज को एक करने की कोशिश की, जो उनके आंदोलनों (महाड, काला राम), लेखन (Annihilation of Caste), और संवैधानिक कार्यों में साफ दिखता है। हालांकि, भागवत का बयान अंबेडकर के पूरे दर्शन को पूरी तरह कवर नहीं करता, क्योंकि अंबेडकर ने हिंदू धर्म की कुछ परंपराओं की आलोचना भी की और अंत में बौद्ध धर्म अपनाया। फिर भी, उनके शुरुआती और मध्य जीवन के कार्य हिंदू समाज को एकजुट करने की दिशा में थे।
निष्कर्ष: एकता की दिशा में समझ और संवाद
डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन और उनके कार्य हिंदू समाज में समानता और एकता की एक अनूठी मिसाल हैं। मोहन भागवत जी का बयान कि अंबेडकर ने हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए अपना जीवन समर्पित किया, उनके प्रयासों का एक पहलू तो उजागर करता है, परंतु उनके विचारों और कार्यों की गहराई इससे कहीं अधिक व्यापक है। अंबेडकर ने जाति व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष किया, सामाजिक सुधारों की वकालत की, और एक ऐसे समाज का सपना देखा जहां सभी बराबर हों। उनके महाड सत्याग्रह, काला राम मंदिर आंदोलन, और Annihilation of Caste जैसे लेखन इस बात के प्रमाण हैं कि वो समाज को जोड़ने की दिशा में काम करना चाहते थे, भले ही उनके तरीके और अंतिम निर्णय—जैसे बौद्ध धर्म अपनाना—कुछ लोगों के लिए विवादास्पद रहे हों।
जहां तक हमारा दृष्टिकोण है तो मोहन भागवत जी ने यह सच्चाई कहकर कहीं न कहीं दलितों के मन में हिंदू उच्च जातियों के प्रति अच्छा भाव पैदा करने की चेष्टा की, जोकि सराहनीय है; क्योंकि दलित लोग हिंदू होते हुए भी हिंदू धर्म में सामाजिक वैमनस्यता मानते हैं।
हर व्यक्ति का दृष्टिकोण अलग हो सकता है, और यह स्वाभाविक है कि अंबेडकर जैसे महान व्यक्तित्व के कार्यों को अलग-अलग नजरिए से देखा जाए। हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं, बल्कि एक खुले दिमाग से उनके योगदान को समझना और उस पर विचार करना है।
आइए, हम सभी अपने-अपने दिमाग से सोचें, तथ्यों को परखें, और एक ऐसे समाज की दिशा में बढ़ें जहां संवाद, समझ, और एकता सर्वोपरि हो। अंबेडकर का जीवन हमें यही सिखाता है—सवाल उठाएं, सुधार करें, और मिलकर आगे बढ़ें।